एक योगिक और आध्यात्मिक दृष्टिकोण से समझ
1. विचार क्या हैं?
विचार (Thoughts) मन के भीतर उत्पन्न होने वाली तरंगें या चित्त की वृत्तियाँ हैं। ये हमारे संस्कारों, अनुभवों, इंद्रियों के संपर्क, और स्मृतियों से उत्पन्न होती हैं। पतंजलि योगसूत्र में कहा गया है:
“योगश्चित्तवृत्तिनिरोधः”
(योगसूत्र 1.2)
अर्थात – योग चित्त की वृत्तियों (विचारों) का निरोध है।
यह श्लोक विचारों की प्रकृति को समझने की कुंजी है। चित्त (मन) में जो भी हलचल होती है — वह सब वृत्ति है, चाहे वह सुखद हो या दुखद।
2. विचार कहाँ से आते हैं?
विचारों के स्रोत विभिन्न होते हैं:
- इंद्रियों से प्राप्त जानकारी (देखा, सुना, छुआ, चखा)
- पूर्व अनुभवों से बनी स्मृतियाँ
- संस्कार (past karmic impressions)
- दूसरों के विचारों से प्रभावित होकर
- भविष्य की चिंता या अतीत की उलझन
उपनिषदों में कहा गया है:
“मन एव मनुष्याणां कारणं बन्धमोक्षयोः।”
(अमृतबिन्दु उपनिषद)
अर्थात – मन ही मनुष्य के बंधन और मोक्ष का कारण है।
मन यदि विचारों में उलझा है, तो बंधन है। यदि विचारों से मुक्त है, तो मोक्ष है।
3. विचारों के प्रकार
i. सकारात्मक विचार – प्रेरणा, करुणा, प्रेम, सेवा आदि से जुड़े।
ii. नकारात्मक विचार – भय, द्वेष, ईर्ष्या, लोभ, क्रोध आदि से जुड़े।
iii. तटस्थ विचार – साधारण जानकारी या तटस्थ चिंतन।
iv. उपद्रवी विचार – जो बार-बार लौटते हैं और मानसिक पीड़ा देते हैं (e.g., आत्मग्लानि, अनिश्चितता)।
v. सतोगुणी, रजोगुणी, तमोगुणी विचार –
जैसे गीता में कहा गया है:
“त्रिविधं नरकस्येदं द्वारं नाशनमात्मनः।
कामः क्रोधस्तथा लोभस्तस्मादेतत्त्रयं त्यजेत्॥”
(भगवद्गीता 16.21)
4. क्या विचार ही दुख का जड़ हैं?
हाँ। ज्यादातर मानसिक अशांति का कारण यही विचार होते हैं — विशेषकर वे जो बार-बार लौटते हैं, आत्मग्लानि या चिंता पैदा करते हैं।
महर्षि रमण कहते हैं:
“मन के विचार जितने कम होंगे, शांति उतनी अधिक होगी।”
5. विचारों से मुक्ति कैसे मिले?
(i) योग का मार्ग – पतंजलि का दृष्टिकोण:
“अभ्यासवैराग्याभ्यां तन्निरोधः”
(योगसूत्र 1.12)
अभ्यास (Practice) – सतत योग, ध्यान, नियमपूर्वक साधना।
वैराग्य (Dispassion) – विषयों से अनासक्ति, विचारों को पकड़ने की प्रवृत्ति का त्याग।
(ii) प्राणायाम और ध्यान
- नाड़ी शोधन प्राणायाम, भ्रामरी और उज्जायी मन को स्थिर करता है।
- अंतर मौन, अजपाजप ध्यान, साक्षी भाव, और चिदाकाश धारणा विचारों से दूरी बनाना सिखाते हैं।
(iii) साक्षी भाव (Witnessing):
कबीरदास जी कहते हैं:
“मन के जीते जीत है, मन के हारे हार।”
मन को समझने और विचारों से दूरी बनाने का मार्ग है साक्षी भाव — बिना प्रतिक्रिया के, विचारों को आते-जाते देखना।
(iv) जप और मंत्र साधना
मंत्र जाप (जैसे “ॐ नमः शिवाय”, “सोऽहम”, “गायत्री मंत्र”) से विचारों का प्रवाह शांत होता है।
(v) मौन साधना और एकांत
स्वामी विवेकानंद ने कहा था:
“In silence comes the power of the soul.”
मौन से विचारों का असली स्वरूप समझ आता है।
6. ऋषि–मुनियों की दृष्टि से समाधान
- वशिष्ठ ऋषि (योग वशिष्ठ) –
“विचार की तरंगें माया हैं। इनसे मोक्ष पाने हेतु निरंतर विवेक और समाधि का अभ्यास आवश्यक है।” - पतंजलि –
“चित्तवृत्तियों को नियंत्रित करके ही पुरुषार्थ संभव है।” - रमण महर्षि –
“विचारों की जड़ ‘मैं’ भावना है। जब ‘मैं कौन हूँ?’ की खोज होगी, विचार स्वयं शांत होंगे।” - श्री अरविंद –
“मन को बदलने का उपाय है — आत्मा की सत्ता में स्थित होकर, विचारों को ऊपर से गुजरते हुए देखना।”
विचारों पर विजय ही भीतर की स्वतंत्रता है
विचारों को दबाना नहीं है, उन्हें देखना है… समझना है… और फिर उन्हें जाने देना है।
साधना, साक्षी भाव, और आध्यात्मिक ज्ञान ही विचारों से मुक्ति का मार्ग है।
आपके लिए दैनिक अभ्यास संकल्प:
“मैं विचारों को पकड़ूँगा नहीं, केवल देखूँगा। मैं हर दिन अभ्यास, वैराग्य, मौन और अंतर मौन से अपने भीतर की शांति को अनुभव करूँगा।”