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विचार: सृष्टि का बीज और आत्मा की परीक्षा

विचार: सृष्टि का बीज और आत्मा की परीक्षा

25 Jun

1. विचार सिर्फ तरंग नहीं, ऊर्जा का बीज है

हर विचार में ऊर्जा निहित होती है। यह ऊर्जा या तो सृजन करती है, या विनाश।
जैसे बीज में पूरा वटवृक्ष समाया होता है, वैसे ही एक सूक्ष्म विचार में एक संपूर्ण जीवन की दिशा छिपी होती है।

यद् भावं तद् भवति — जैसा सोचते हो, वैसे ही बन जाते हो।
(उपनिषद)

हमारा जीवन वास्तव में विचारों का मूर्त रूप है — शरीर, संबंध, कर्म, परिस्थिति — सब विचारों से जन्मे हैं।

2. विचार औरमैंकी जड़

सभी विचार एक केंद्रीय ‘मैं’ (Ego या अहंता) के चारों ओर घूमते हैं।
ध्यान से देखें तो हर विचार में कोई न कोई “मेरा” या “मैं” जुड़ा होता है:

  • मेरा अनुभव
  • मुझे दुख
  • मेरी योजना
  • मैं अच्छा हूँ / बुरा हूँ

महर्षि रमण पूछते हैं:

यहमैंविचार कहाँ से आता है? जब इसका मूल खोजोगे, सब विचार नष्ट हो जाएंगे।

यहाँ से विचार की जड़ की खोज प्रारंभ होती है — जो वास्तव में आत्मा और अहंता के बीच की परत है।

3. विचार और चित्त की गहराई: पाँच स्तर

  1. मन (Manas) – रोज़मर्रा की सोच
  2. बुद्धि (Intellect) – निर्णय शक्ति
  3. चित्त (Memory field) – स्मृतियाँ और संस्कार
  4. अहंकार (Ego) – ‘मैं’ का बोध
  5. साक्षी आत्मा (Witness Self) – विचारों को देखने वाला

जब हम साक्षी में टिकते हैं, विचार स्वतः कम हो जाते हैं। जैसे धूप में ओस की बूँदें गायब हो जाती हैं।

4. विचार और पुनर्जन्म:

योग वशिष्ठ में लिखा है:

चित्त में उठने वाले सूक्ष्म संकल्प ही अगले जन्मों का कारण बनते हैं।

मतलब — कोई विचार अगर बार-बार दोहराया जाए, उसमें भावना जोड़ दी जाए — वह कर्मबीज बन जाता है।
यही बीज भविष्य में प्रारब्ध और संयोग बनकर सामने आता है।

5. विचार से परे जानासमाधि की अवस्था

विचारों से पार जाना ही ध्यान का चरम बिंदु है।
पतंजलि कहते हैं:

तदा द्रष्टुः स्वरूपेऽवस्थानम्
(योगसूत्र 1.3)

तब (विचारों के रुकने पर) द्रष्टा (आत्मा) अपने स्वरूप में स्थित हो जाता है।

यह वह बिंदु है जहाँ न कोई विचार है, न कोई संघर्ष — केवल अनुभव का मौन प्रकाश

6. विचारों को काटने की नहीं, पार देखने की आवश्यकता है

विचार से लड़ना उसे और मज़बूत करता है।
पर जब आप उसे देखते हैं, समझते हैं, नाम नहीं देते, तब वह शांत हो जाता है

हि ज्ञानेन सदृशं पवित्रमिह विद्यते
(भगवद्गीता 4.38)

इस संसार में ज्ञान के समान पवित्र कुछ नहीं।

विचार को देखने का अभ्यास ही आत्मा की ओर यात्रा है

  • हर विचार पर सजगता = आत्मा की ओर एक कदम
  • विचार को पकड़ना = बंधन
  • विचार को देखना = मुक्ति
  • विचार की जड़ में जाना = मैं का विसर्जन
  • विचार से परे जाना = समाधि

साधना सुझाव:

  1. सुबह और शाम 10 मिनट मौन में बैठेंबस विचार देखें, पकड़ें नहीं।
  2. दिनभरमैं कौन हूँ?’ की अंतर्नाद बनी रहे।
  3. सोने से पहले 5 मिनटउस दिन के प्रमुख विचारों को देखें, बस देखें।
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